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प्लासी का युद्ध विस्तार में

Filed under: History on 2021-07-12 17:44:37
1756 में अली वर्दी खान की मृत्यु के बाद सिराजुद्दोला बंगाल के नवाब बने। कंपनी को सिराजुद्दोला की ताकत से काफी भय था। सिराजुद्दोला की जगह कंपनी एक ऐसा कठपुतली नवाब चाहती थी जो उसे व्यापारिक रियायते और अन्य सुविधाएं आसानी से किसी को नवाब बना दिया जाय। कंपनी को कामयाबी नहीं मिली। जवाब में सिराजुद्दोला ने हुक्म दिया की कंपनी उसके राज्य के राजनीतिक मामलों में टांग अड़ाना बंद कर दे, किलेबंदी रोके और बकायदा राजस्व चुकाए। जब दोनों पीछे हटने को तैयार नहीं हुए तो अपने 30000 सिपाहियों के साथ नवाब ने कासिम बाजार में स्थित English factory पर हमला बोल दिया। नवाब की फौज ने कंपनी के अफसरों को गिरफ्तार कर लिया, गोदाम पर ताला लगा दिया, अंग्रेजों के हथियार छीन लिए और अंग्रेज जहाजों को घेरे में ले लिया। इसके बाद नवाब ने कंपनी के कोलकाता स्थित के लिए पर कब्जे के लिए उधर का रुख किया। 

कोलकाता के हाथ से निकल जाने की खबर सुनने पर मद्रास में तैनात कंपनी के अफसरों ने भी रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में सेनाओं को रवाना कर दिया। इससे ना को नौसैनिक बेड़े की मदद ही मिल रही थी। इसके बाद नवाब के साथ लंबे समय तक सौदेबाजी चली। आखिरकार 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के मैदान में सिराजुद्दौला के खिलाफ कंपनी की सेना का नेतृत्व किया। नवाब सिराजुद्दौला की हार का एक बड़ा कारण उसके सेनापतियों में से एक सेनापति मीर जाफर की कारगुजारिया भी थी। मीर जाफर की टुकड़ियों ने इस युद्ध में हिस्सा नहीं लिया। रॉबर्ट क्लाइव ने यह कह कर उसे अपने साथ मिला लिया था कि सिराजुद्दौला को हटाकर मीर जाफर को नवाब बना दिया जाएगा। 

प्लासी की जंग इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि भारत में यह कंपनी की पहली बड़ी जीत थी। 
प्लासी की जंग के बाद सिराजुद्दौला को मार दिया गया और मीर जाफर नवाब बना। कंपनी अभी भी शासन की जिम्मेदारी संभालने को तैयार नहीं थी। उसका मूल उद्देश्य तो व्यापार को फैलाना था। अगर यह काम स्थानीय शासकों की मदद से बिना लड़ाई लड़े ही किया जा सकता था तो किसी राज्य को सीधे अपने कब्जे में लेने की क्या जरूरत थी। 

जल्दी ही कंपनी को एहसास होने लगा कि यह रास्ता भी आसान नहीं है। कठपुतली नवाब भी हमेशा कंपनी के इशारों पर नहीं चलते थे। आखिरकार उन्हें भी तो अपनी प्रजा की नजर में सम्मान और संप्रभुता का दिखावा करना पड़ता था। 

तो फिर कंपनी क्या करती? जब मीर जाफर ने कंपनी का विरोध किया तो कंपनी ने उसे हटा दो मीर कासिम को नवाब बना दिया। जब मीर कासिम परेशान करने लगा तो बक्सर की लड़ाई में उसको भी हराना पड़ा। उसे बंगाल से बाहर कर दिया गया और मीर जाफर को दोबारा नवाब बनाया गया। अब नवाब को हर महीने ₹500000 कंपनी पर चुकाने थे। कंपनी अपने सैनिक खर्चों से निपटने, व्यापार की जरूरत हो तथा अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए और पैसा चाहती थी। कंपनी और ज्यादा इलाके तथा और ज्यादा कमाई चाहती थी। 1765 में जब मीर जाफर की मृत्यु हुई तब तक कंपनी के इरादे बदल चुके थे । कठपुतली नवाबों के साथ अपने खराब अनुभव को देखते हुए क्लाइव ने ऐलान किया कि अब हमें खुद ही नवाब बनना पड़ेगा।
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