वेदों की संख्या चार हैं - ऋग्वेद :-यह ऋतुओं का संग्रह है। ऋग्वेद 10 डलों में विभाजित है। इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं, जिसमें 11 बालाखिल्य श्लोक हैं। ऋग्वेद में 10462 मन्त्रों का संकलन है। ऋग्वेद का पहला तथा 10वां मंडल क्षेपक माना जाता है। नौवें मंडल में सोम की चर्चा है। प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल से लिया गया है। जिसमें सवितृ नामक देवता को सम्बोधित किया गया है। आठवें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है। सरस्वती के परवाह-क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है। सामवेद :- यह गीति-रूप मन्त्रों का संग्रह है और इसके अधिकांश गीत ऋग्वेद से लिए गए है। सामवेद से संबंधित श्लोक तथा मन्त्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गात्री कहलाते थे। सामवेद का संबंध संगीत से है तथा इसमें संगीत के विविध पक्षों का उल्लेख हुआ है। इसमें कुल 1549 श्लोक है जिनमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं। सामवेद में मन्त्रों की संख्या 1810 है। इसकी तीन शाखाएं हैं - कौथम, जैमिनीय एवं राणायनीय। यजुर्वेद :- इसमें यज्ञानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है। यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकांडों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मंत्रों का संग्रह है। इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्य कहलाते थे। यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है। इसके दो पाठान्तर हैं - कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद। यजुर्वेद में कृषि तथा सिंचाई की प्रविधियों की चर्चा है। अथर्ववेद :- यह तंत्र-मन्त्रों का संग्रह है। अर्थर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी। अर्थर्ववेद की दो शाखाएं हैं - शौनक एवं पिप्लाद। अर्थर्ववेद के अधिकांश मन्त्रों का संबंध तंत्र-मंत्र या जादू-टोना से है। रोग निवारण औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है। अर्थर्ववेद के मन्त्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है। अर्थर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है। सर्वोच्च शासक को अर्थर्ववेद में एकराट कहा गया है। सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में अर्थर्ववेद में हुआ है।