भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम 1857 ई. में ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध भारतीयों द्वारा पहली बार संगठित एवं हथियार बंद लड़ाई हुई। इसे राज्य क्रांति कहना उचित होगा। राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में यह पहला संगठित संघर्ष था। नि:संदेह इस विप्लव में राष्ट्रवाद के तत्वों का अभाव था। इस विप्लव के नेताओं में उद्देश्यों की समानता न होने के कारण वे पूर्ण रूप से संगठित न हो सके थे। यद्यपि यह विप्लव असफल रहा, फिर भी इसने प्राचीन और सामंतवादी परंपराओं को तोड़ने में पर्याप्त सहायता पहुँचायी। क्रांति का स्वरूप 1857 ई. की क्रांति के विषय में यूरोपीय तथा भारतीय विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। एक ओर यूरोपीय विद्वान इसे ‘सिपाही विद्रोह’ की संज्ञा देकर तथा एक आकस्मिक घटना बताकर टाल देते हैं दूसरी ओर भारतीय विद्वान इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं। यद्यपि क्रांति के स्वरूप पर अंग्रेज विद्वानों में मतैक्य नहीं है फिर भी वे इस बात पर एकमत हैं कि क्रांति एक राष्ट्रीय घटना नहीं थी, न तो उसे जनता का समर्थन ही प्राप्त था। सर लारेन्स ने कहा है कि ‘‘क्रांति का उद्गम स्थल सेना थी और इसका तत्कालीन कारण कारतूस वाली घटना थी। किसी पूर्वागामी षड्यंत्र से इसका कोई संबंध नहीं था। यद्यपि बाद में कुछ असंतुष्ट व्यक्तियों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए इससे लाभ उठाया।’’ जबकि इतिहासकार सर जॉन सोले ने कहा है, ‘‘1857 ई. का गदर केवल सैनिक विद्रोह था। यह पूर्णत: अंतर्राष्ट्रीय स्वार्थी विद्रोह था जिसका न कोई देशी नेता था और न जिसको संपूर्ण जनता का समर्थन प्राप्त था।’’ इससे भिन्न मत प्रकट करते हुए दूसरे अंग्रेज विद्वान पर जेम्स ऑटरम ने इसे अंग्रेजों के विरूद्ध मुसलमानों का षड्यंत्र कहा है। मुसलमानों का उद्देश्य बहादुर शाह के नेतृत्व में पुन: मुसलमानी साम्राज्य की स्थापना करना था। इसी उद्देश्य से उन्होंने षड्यंत्र रचा और हिन्दुओं को अपना हथकण्डा बनाया। नि:संदेह आंदोलन को बहादुरशाह का नेतृत्व प्राप्त हुआ लेकिन इसका उद्देश्य यह कभी नहीं था कि मुगल साम्राज्य को फिर से जिलाया जाय। इस आंदोलन में हिन्दुओं और मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया। इसे कारतूस की घटना का परिणाम कहना भी अतिश्योक्ति होगें। ब्रिटिश इतिहासकार राबर्टस का भी मत था कि वह एक सैनिक विद्रोह मात्र नहीं था। लार्ड सैलिसबरी ने कहा था कि ‘‘ऐसा व्यापक और शक्तिशाली आंदोलन चर्बी वाले कारतूस की घटना का परिणाम नहीं हो सकता। विद्रोह की पृष्ठभूमि में कुछ अधिक बातें थीं जो अपेक्षाकृत स्पष्ट कारणों से अवश्य ही अधिक महत्वपूर्ण थीं।’’ भारतीय विद्वानों ने स्पष्ट रूप से अंग्रेजी विद्वानों के विचारें का विरोध किया है। उनका मत है कि 1857 ई. का गदर एक राष्ट्रीय क्रांति था जिसकी तुलना हम विश्व की महान क्रांतियो, जैसे अमरीकी, फ्रांसीसी और रूस की क्रांतियों से कर सकते हैं। श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘‘यह एक सैनिक विद्रोह से बहुत कुछ अधिक था। यह जोरों से फैला और एक जनप्रिय आंदोलन था जिसने स्वतंत्रता संग्राम का रूप ले लिया।’’ लाला लाजपत राय का भी कहना था कि ‘‘भारतीय राष्ट्रवाद ने इस आंदोलन को प्रोत्साहित किया जिसके चलते इसने राष्ट्रीय और राजनीतिक रूप धारण कर लिया।’’ आधुनिक भारतीय इतिहासकार वीर सावरकर तथा अशोक मेहता ने इस विप्लव को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कह कर ही पुकारा है। भूतपूर्व शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भी बताया था कि यह विद्रोह न तो इसकी पृष्ठभूमि में किन्हीं उल्लेखनीय व्यक्तियों का हाथ था अपितु यह समस्त जनता में सदियों से उत्पन्न असंतोष का परिणाम था। इस प्रकार भारतीय विद्वान 1857 ई. के विप्लव को एक साधारण सैनिक गद मानने से इनकार करते हैं वस्तुत: इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रथम संग्राम कहना अधिक युक्तिसंगत तथा उचित होगा।