इसकी शर्ते थीं - # पेशवा और अंग्रेज दोनों ने परस्पर एक दूसरे की सहायता का आशवासन दिया। # पेशवा के राज्य की सीमा में अंग्रेज सेना और तोपखाना रखा जायेगा और इसके व्यय के लिये प्रतिवर्ष 26 लाख रूपये आय वाली भूमि का प्रदेश अंग्रेजों को दिया जायेगा। पेशवा ने वचन दिया कि उसके राज्य में कोई भी यूरोपियन अंग्रेजों की आज्ञा के बिना नहीं रह सकेगा। # पेशवा और निजाम तथा पेशवा और गायकवाड़ के झगड़ों में अंग्रेज मध्यस्थता करेगे । # बिना अंग्रेजों की अनुमति के पेशवा किसी भी राज्य से युद्ध या संधि नहीं करेगा। # इस संधि का यह महत्व है कि पेशवा अंग्रेजो पर पूर्णरूप से आश्रित हो गया। किन्तु इस संधि ने अंग्रेजों को मराठों के झगड़ों और युद्धों में अत्याधिक व्यस्त कर दिया। पेशवा बाजीराव द्वितीय 13 मई 1802 ई. को बेसिन से पूना पहुँचा और अंग्रेजों के संरक्षण में पेशवा बन गया। उसने महाराष्ट्र की स्वतंत्रता को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया पर जब उसे अपनी वास्तविक राजनीतिक दुर्दशा का ज्ञान हुआ तब उसने गुप्त रूप से अंग्रेजों के विरूद्ध भौंसले और सिंधिया से पत्र व्यवहार कर समर्थन प्राप्त कर लिया। होल्कर इससे दूर रहा। इन परिस्थितियों में वेलेजली ने मराठों के विरूद्ध युद्ध प्रारंभ कर दिया। अंगे्रेजों ने 12 अगस्त 1803 ई. को अहमद नगर पर अधिकार कर लिया और सिंधिया तथा भौंसले की सम्मिलित सेनाओं को असाई नामक स्थान पर 23 सितम्बर 1803 ई. को परास्त कर दिया। 29 नवम्बर 1803 ई. को अंग्रेज सेना ने भौंसले को अमर गाँव के युद्ध में पुन: परास्त कर दिया। अपनी पराजय से विवश हो रघुजी भौंसले द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ 17 दिसम्बर 1803 ई. को देवगाँव की संधि कर ली।