तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817 ई. से 1818 ई.) के कारण # पेशवा बाजीराव में तीव्र असंतोष # त्रियम्बकराव का अंग्रेज विरोधी होना # गायकवाड़ - पेशवा मतभेद और शास्त्री हत्या # पेशवा तैयारी # पेशवा द्वारा अंग्रेज रेसिडेन्स पर आक्रमण 1. पेशवा बाजीराव में तीव्र असंतोष- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों से की गयी सहायक संधि से उत्पन्न अपनी क्षीण और दयनीय दशा का अनुभव कर लिया था। वह अंग्रेजों पर आश्रित होने के कारण क्षुब्ध था। उसे अपनी हीन राजनीतिक परिस्थिति से तीव्र असंतोश था। अंग्रेजों के संरक्षण और प्रभुत्व से वह मुक्त होना चाहता था। अत: उसने मराठा शासकों से भी गुप्त रूप से इस विषय पर वार्तालाप प्रारंभ कर किया और उनको अंग्रेजों के विरूद्ध खडे़ होने हेतु आव्हान किया तथा अपनी शक्ति को भी संगठित करने के प्रयास प्रारंभ कर दिये। 2. त्रियम्बकराव का अंग्रेज विरोधी होना- मराठा पेशवा पर मंत्री त्रियम्बकराव दांगलिया का अत्याधिक प्रभाव था। वह अंग्रेजों का शत्रु था और अन्य मराठा शासकों की सहायता से अंग्रेजों को अलग करना चाहता था। 3. गायकवाड़ - पेशवा मतभेद और शास्त्री हत्या- गायकवाड़ अंग्रेजों का मित्र था। पेशवा ने त्रियम्बकराव के परामशर से अपने अधिकारों के आधार पर गायकवाड़ से अपने बचे हुए कर का धन माँगा। गायकवाड़ ने अपने उपमंत्री गंगाधर शास्त्री को पेशवा के पास पूना इस संबंध में समझौता करने के लिए भेजा। गंगाधर अंग्रेजों का प्रबल समर्थक था। किन्तु पंढरपरु में धोखे से शास्त्री की हत्या कर दी गयी। अंग्रेज रेजीडेटं एलफिन्सटन को यह सन्दहे था कि त्रियम्बकराव ने यह हत्या करवायी है। पेशवा को भी इसके लिए दोषी ठहराया गया। फिर भी अंग्रेजों ने त्रियम्बकराव को बंदी बना लिया परंतु वह बंदीगृह से भाग निकला। एलफिन्सटन का विशवास था कि पेशवा बाजीराव ने त्रियम्बकराव को भागने में सहायता प्रदान की है। अत: अंग्रेजों ने पेशवा से उसकी माँग की। किन्तु पेशवा ने उसे सौंपने में अपनी असमर्थता प्रगट की। इस घटना से अंग्रेजों और पेशवा के संबंधों में कटुता गहरी हो गई। 4. पेशवा तैयारी- अब पेशवा मराठा शासकों से अंग्रेजों के विरूद्ध संगठित होने की गुप्त रूप से चर्चाएँ कर रहा था। उसने अपनी सेना में भी वृद्धि करना प्रारंभ कर दिया था। इस पर लार्ड हेिस्ंटग्स ने अहस्तक्षपे की नीति त्याग दी और रेजीडेटं एलफिन्सटन के द्वारा बाजीराव पर सैनिक रूप से दबाव डाला गया कि वह त्रियम्बकराव को अंग्रेजों को सौंप दे और नवीन संधि करे। पेशवा इस समय सैनिक शक्ति विहीन था। इसलिए विवश होकर उसने 13 जून 1817 ई. को अंग्रेजों से नवीन संधि कर ली जिसे पूना की संधि कहा जाता है। इस संधि की शर्ते थीं- # पेशवा बाजीराव ने मराठा संघ के प्रमुख का पद और नेतृत्व त्याग दिया। # अब पेशवा अन्य भारतीय राज्यों से और विदेशी सत्ता से राजनीतिक संबंध तोड़ देगा, उनसे किसी प्रकार का पत्र व्यवहार नहीं करेगा। # पेशवा ने बुन्देलखण्ड, मालवा, मध्यभारत, अहमदनगर का दुर्ग व जिला अंग्रेजों को दे दिया। इसके अतिरिक्त उसने अपने अधीन राज्य का कुछ भाग जिसकी आय 34 लाख रूपया वार्शिक थी, अंग्रेजों को दे दिया। # पेशवा ने मराठा शासक गायकवाड़ पर उसका जो पिछला कर बकाया था, वह भी उसने त्याग दिया और भविश्य में केवल चार लाख रूपये वार्शिक कर लेना स्वीकार किया। # पेशवा के लिए यह संधि नितांत ही अपमानजनक थी। अब वह पहले की अपेक्षा अंग्रेजों का अधिक कÍर शत्रु हो गया और उसने अधिक तीव्रता से युद्ध की तैयारियाँ करना प्रारंभ कर दी। 5. पेशवा द्वारा अंग्रेज रेसिडेन्स पर आक्रमण पूना की गंभीर परिस्थिति को देखकर पूना का अंग्रेज रेजीडेंट पूना छोड़कर किरकी चला गया और वहाँ अंग्रेज सेना भी बुला ली किन्तु पेशवा ने इनको वापिस भेजने की माँग की, परंतु रेजीडेंट एलफिन्सटन ने उसकी मांग ठुकरा दी। इस पर पेशवा ने रेजीडेंसी पर आक्रमण किया और उसे जला डाला। यही तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध का तात्कालिक कारण था।