जिस काव्य में समान शब्द के अलग – अलग अर्थो में आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है | यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग – अलग अर्थ दे | जैसे – कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय | या खाये बौरात नर या पाए बौराय | | इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है | प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दूसरा कनक का अर्थ – धतूरा है | अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थक के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है | यमक अलंकार के उदाहरण : # माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर | # कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर || # किसी सोच में हो विभोर सांसे कुछ ठंडी खींची | # फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखे मींची || # केकी रव की नूपुर-ध्वनि सुन, जगती जगती की मूक प्यास | # बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न | # हरिनी के नैनान ते हरिनि के ये नैन |