इसमें दो स्वर्ण या सजातीय स्वरों के बीच संधि होकर उनके दीर्घ रूप हो जाते है| अर्थात दो स्वर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाता हैं| इस संधि के चार रूप होते है- 1 – अ/आ + अ/आ = आ अ + आ = आ अ + आ = आ आ + अ = आ आ + आ = आ 2 – इ / ई + इ / ई = ई इ + इ = ई इ + ई = ई ई + इ = ई ई + ई = ई 3 – उ / ऊ + उ / ऊ = ऊ उ + उ = ऊ उ + ऊ = ऊ ऊ + उ = ऊ ऊ + ऊ = ऊ 4 – ऋ + ऋ/ ऋ = ऋ (सिर्फ संस्कृत में प्रयोग) जैसे – पितृ + ऋण = पितृण